“हर तरफ चली हवा असुरक्षा की!
बचपनें को कैसे सुरक्षित करू!!
हर मोड़ पर दिल घबराता हैं!
जब तुझको छोड़ मेरे लाल मैं काम पर चली!!
कितना सिखाती हूँ तुझको अंजानों से बात न कर!
फिर भी मेरे लाल हर मोड़ पर घबराती हूँ!!
कमाने की मज़बूरी न होती तो तुझे सीने से लगा कर रखती!!
आँखों से ओझल न होने देती!!
क्योंकि हर मोड़ पर दिल घबराता हैं!!
कौनसा स्पर्श सही हैं मेरे बच्चें और कौनसा गलत!!
ये तुझे सिखाती हूँ!!
हर तरफ मुखौटो में कोई छिपा हैं!
तू पहचान सके उसे ये तुझे बतलाती हूँ!
क्योंकि हर मोड़ पर दिल घबराता हैं!”

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